हवा में युद्ध, मानव जीवन पर पड़ रहा प्रभाव

हरदोई, जागरण संवाददाता : हवा में युद्ध की बात सुनने में अटपटी जरूर लगती है, लेकिन हवा में होने वाले युद्ध का विपरीत प्रभाव परोक्ष रूप से मानव जीवन और पर्यावरण पर पड़ रहा है। बात हो रही है मोबाइल टावरों की संख्या, उनकी क्षमता और होने वाले रेडिएशन के प्रभाव की। मोबाइल कंपनियां ग्राहकों को अच्छी सेवाओं के फेर में न केवल टावरों की संख्या बल्कि क्षमता भी बढ़ा रहीं हैं। कंपनियों की प्रतिस्पद्र्धा से मोबाइल सिग्नल की क्षमता बढ़ने से रेडिएशन भी बढ़ जाता है।

ग्राहकों को लुभाने के लिए मोबाइल कंपनियां बेहतर सेवाएं उपलब्ध कराने के न केवल दावे करती हैं बल्कि टावरों की संख्या और उनकी क्षमता भी बढ़ाने में जुटी हुई हैं। सरकारी कंपनियों में भारत संचार निगम लिमिटेड को छोड़ दें तो निजी मोबाइल कंपनियों में उपभोक्ताओं को लुभाने के लिए होड़ सी लगी हुई है। निजी कंपनियां एक-दूसरे को पछाड़ने के चक्कर में आबादी वाले क्षेत्रों में भी अधिक क्षमता के टावर स्थापित करने चूक नहीं रही हैं। ऐसे में मोबाइल कंपनियों के टावरों से निकलने वाले सिग्नल के साथ ही रेडिएशन का परोक्ष रूप से जीवन और पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
मोबाइल कंपनियों की ओर से लगे टावरों से निकलने वाले सिग्नल हवा में एक-दूसरे को पछाड़ने के लिए एक तरह से युद्ध कर रहे हैं। उनके इस युद्ध में ग्राहकों को अच्छी सेवाएं जरूर मिल जाती हैं, जिससे उपभोक्ता खुद को संतुष्ट समझते हैं, लेकिन हवा में होने वाले के सिग्नलों के युद्ध और वातावरण में घुलने वाले रेडिएशन से होने वाले नुकसान से वह अनजान बना रहते हैं।
जानकारों का कहना है कि रेडिएशन के कारण मानव के मस्तिष्क पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। मोबाइल टावरों की स्थापना और उनकी क्षमता के संबंध में केंद्रीय दूर संचार मंत्रालय की ओर मानक और नियम निर्धारित हैं। नियमों के मुताबिक टावर की सिग्नल क्षमता अधिकतम 6 से 5 किलोमीटर होनी चाहिए, लेकिन कंपनियों ने ग्राहकों को लुभाने के लिए क्षमता वृद्धि के साथ ही टावरों को भी कम दूरी के अंतराल पर स्थापित कराया है।

जिले में करीब 600 से अधिक हैं टावर : जिले में मोबाइल कंपनियों की ओर से उपभोक्ताओं को बेहतर सेवाएं प्रदान करने के लिए करीब 600 से अधिक टावर हैं। जिसमें भारत संचार निगम लिमिटेड के ही जिले में 155 टावर लगे हुए हैं। इसी तरह से निजी कंपनियों के भी जिले में टावर लगे हुए हैं। हालांकि निजी कंपिनयों ने टावरों में आपस में भागीदारी कर रखी है, जिससे टावरों की संख्या भले ही कम हो लेकिन उन पर बीटीएस यानी बेस ट्रांसीवर स्टेशन की संख्या कहीं अधिक है। बेस ट्रांसीवर स्टेशन का ही मोबाइल सिग्नल की उपलब्धता में महत्ती भूमिका होती है।

क्या बोले जवाबदेह : भारत संचार निगम लिमिटेड के जिला प्रबंधक संजय केसरवानी ने बताया कि बीएसएनएल की ही भांति निजी मोबाइल कंपनियों को भी केंद्र सरकार से सर्किल वार लाइसेंस मिला हुआ है। निजी कंपनियां अपनी लाइसेंस की शर्तों के अनुसार ही टावर लगाती हैं।

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